ख़्वाब ...
ये ख्वाब कितने हसीन हैं....
यथार्थ की तारीकियों से दूर , बंदिशों से अलग , तनहाइयों से जुदा।
जाने क्यूँ इन ख़्वाबों पर अब मेरा बस नहीं
पर हाँ , इनपे तुम्हारी पाबन्दी भी नहीं।
माना की यथार्थ में तुम्हारा अंश है।
मगर ये ख़्वाब ..... ये ख़्वाब मेरे अपने हैं।
मुझे मेरे ख़्वाब ही ज़्यादा प्यारे हैं।
इनमे तुम्हारे खो जाने का डर नहीं,
और खुद को पा जाने का भी नहीं।।
तुम कहते हो की यथार्थ यही है।
पर चाहे वो जितना भी सही है।
मैं इसका परित्याग करता हूँ।
क्यूंकि, अक्सर गलत होना ही सही होता है।
मुझे मेरे ख़्वाबों की उड़ान ही प्यारी है।
इनमे तुम्हारे छूट जाने का डर नहीं,
और मेरे गिर जाने का भी नहीं।।
--- सृजन