मैं अक्सर अपने ख्वाबों में तुझको ही पाया करता हूँ
एक झलक में प्रेम मेघों से,घिर घिर मैं जाया करता हूँ।
ये स्वप्न तो भ्रम है सोच -सोच न मैं खोता न मैं रोता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
हैं प्रश्न बहुत तुमसे मुझको,फिर भी क्यों मैं चुप रहता हूँ
तेरे अल्फ़ाज़ों को बेकल हो तेरा मौन मैं सहता हूँ।
इस मनमोहक स्वरलहरी से,यूँ व्यर्थ न विचलित मैं होता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
माना ये स्वप्न तो है मिथ्या, पर टूट न जाये डरता हूँ
तू नहीं अमानत मेरी जान, मैं अश्रु समर्पित करता हूँ।
मिथ्या सागर में तृप्ति को यूँ नहीं लगता मैं गोता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
-- सृजन
एक झलक में प्रेम मेघों से,घिर घिर मैं जाया करता हूँ।
ये स्वप्न तो भ्रम है सोच -सोच न मैं खोता न मैं रोता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
हैं प्रश्न बहुत तुमसे मुझको,फिर भी क्यों मैं चुप रहता हूँ
तेरे अल्फ़ाज़ों को बेकल हो तेरा मौन मैं सहता हूँ।
इस मनमोहक स्वरलहरी से,यूँ व्यर्थ न विचलित मैं होता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
माना ये स्वप्न तो है मिथ्या, पर टूट न जाये डरता हूँ
तू नहीं अमानत मेरी जान, मैं अश्रु समर्पित करता हूँ।
मिथ्या सागर में तृप्ति को यूँ नहीं लगता मैं गोता
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।
-- सृजन