Tuesday, January 21, 2014

अनहद में विश्राम .......

जीवित शब्दों में कहने की अभिलाषा नहीं है,
अंतर्मन के संवादों की कोई भाषा नहीं है,
शोरीदगी का आलम तो बदस्तूर ज़ारी है,
पर लबों की ख़ामोशी की कोई परिभाषा नहीं है। 

न मालूम उस उलझन को सुलझाने का क्या जूनून था ,
शायद  ....  भ्रम में जीने में ही ज्यादा सुकून था ,
कि अब पतझड़ में , इस संज के लब-ऐ-तबस्सुल झड़ने लगे हैं,
और अतीत के वो लम्हे भी ज़र्द पड़ने लगे हैं। 

कौन कहता है कि ये फ़साना निगाहों से बयां होता है,
कि अक्सर मौन ही दिल की जुबां होता है,
मौन तो मैं पहले भी था … आज भी हूँ,
तब लगता था, मानों मौन कुछ कहता है ,
पर अब तो मेरा मौन भी मौन रहता है ……… 
      अब तो मेरा मौन भी मौन रहता है ……… 


                                                                         --- सृजन 


शोरीदगी  -  दीवानगी 
संज - हसरत रखने वाला 
लब - होंठ 
तबस्सुल - मुस्कान 


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