Monday, December 23, 2013

क्या होता ?????

मैं अक्सर अपने ख्वाबों में तुझको ही पाया करता हूँ 
एक झलक में प्रेम मेघों से,घिर घिर मैं जाया करता हूँ। 
ये स्वप्न तो भ्रम है सोच -सोच न मैं खोता न मैं रोता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।  

हैं प्रश्न बहुत तुमसे मुझको,फिर भी क्यों मैं चुप रहता हूँ 

तेरे अल्फ़ाज़ों को बेकल हो तेरा मौन मैं सहता हूँ। 
इस मनमोहक स्वरलहरी से,यूँ व्यर्थ न विचलित मैं होता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।  

माना ये स्वप्न तो है मिथ्या, पर टूट न जाये डरता हूँ 

तू नहीं अमानत मेरी जान, मैं अश्रु समर्पित करता हूँ।  
मिथ्या सागर में तृप्ति को यूँ नहीं लगता मैं गोता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।

                                                               -- सृजन 

Friday, December 20, 2013

PUNAR JANM

जाने ये किसकी साज़िश थी , जो ये नज़रें फ़िर तुझपे आज जा थमीं  
तेरी ज़िल्द का सौंधापन ,
तेरे कुरकुरे पन्नों की खनक ,
तेरी धूल की परत का स्वाद ,
तेरी स्याही का उड़ा काला रंग ,
सब कुछ पहले जैसा , आज भी। 
सच कहते हैं, पहला प्यार भुलाये नहीं भूलता। 
आज भी तेरे शब्दों में उलझ जाना,
तुझे छूने पे मेरी उँगलियों का इतराना , बड़ा याद आता है।

तेरे पीले पन्नों ने आज फिर मुझे ज़िंदा किया है ,
वो पन्ने जिनपर कभी मेरी लेखनी की हुकूमत हुआ करती थी। 
तूने अपनी चाहत में मक़ाम जो ये पाया है , 
ले आज तेरा बादशाह, फिर लौट आया है।  

                                                                  ---- सृजन