Friday, December 20, 2013

PUNAR JANM

जाने ये किसकी साज़िश थी , जो ये नज़रें फ़िर तुझपे आज जा थमीं  
तेरी ज़िल्द का सौंधापन ,
तेरे कुरकुरे पन्नों की खनक ,
तेरी धूल की परत का स्वाद ,
तेरी स्याही का उड़ा काला रंग ,
सब कुछ पहले जैसा , आज भी। 
सच कहते हैं, पहला प्यार भुलाये नहीं भूलता। 
आज भी तेरे शब्दों में उलझ जाना,
तुझे छूने पे मेरी उँगलियों का इतराना , बड़ा याद आता है।

तेरे पीले पन्नों ने आज फिर मुझे ज़िंदा किया है ,
वो पन्ने जिनपर कभी मेरी लेखनी की हुकूमत हुआ करती थी। 
तूने अपनी चाहत में मक़ाम जो ये पाया है , 
ले आज तेरा बादशाह, फिर लौट आया है।  

                                                                  ---- सृजन 

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