Monday, December 23, 2013

क्या होता ?????

मैं अक्सर अपने ख्वाबों में तुझको ही पाया करता हूँ 
एक झलक में प्रेम मेघों से,घिर घिर मैं जाया करता हूँ। 
ये स्वप्न तो भ्रम है सोच -सोच न मैं खोता न मैं रोता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।  

हैं प्रश्न बहुत तुमसे मुझको,फिर भी क्यों मैं चुप रहता हूँ 

तेरे अल्फ़ाज़ों को बेकल हो तेरा मौन मैं सहता हूँ। 
इस मनमोहक स्वरलहरी से,यूँ व्यर्थ न विचलित मैं होता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।  

माना ये स्वप्न तो है मिथ्या, पर टूट न जाये डरता हूँ 

तू नहीं अमानत मेरी जान, मैं अश्रु समर्पित करता हूँ।  
मिथ्या सागर में तृप्ति को यूँ नहीं लगता मैं गोता 
एक दिन मिलने ये ख्वाब छोड़ तुम आ जाती तो क्या होता।

                                                               -- सृजन 

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